अरुणिमा सिन्हा की सफलता की कहानी
यह कहानी है एक भारतीय विकलांग महिला पर्वतारोही एवं वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा की, जिसने अपने जीवन की हर कठिनाई को चुनौती माना और उसे पार किया। अरुणिमा ने अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। अरुणिमा सिन्हा की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि जिंदगी की हर मुश्किल को परास्त किया जा सकता है, सिर्फ अगर हमारे अंदर वो साहस और विश्वास हो, चाहे हालात जैसे भी हों, हमें अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए।
अरुणिमा सिन्हा की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में सफलता के लिए सिर्फ मेहनत ही काफी नहीं होती, बल्कि साहस और आत्मविश्वास भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, तो चलिए अरुणिमा की शुरुआत से लेकर सफलता तक की पूरी कहानी जानते है।
नाम |
अरुणिमा सिन्हा |
जन्म |
20 जुलाई 1989 |
जन्म स्थान |
अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश |
उम्र |
34 वर्ष |
धर्म |
हिन्दू |
नागरिकता |
भारतीय |
भाषा |
हिंदी |
पति |
गौरव सिंह |
शिक्षा |
नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोहण का कोर्स |
पहचान |
माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय दिव्यांग महिला |
पेशा |
CISF में हेड कांस्टेबल, भारतीय पर्वतारोही, वॉलीबॉल खिलाडी |
अरुणिमा सिन्हा का जन्म एवं परिवार :-
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1989 को उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर में हुआ था, अरुणिमा के पिता भारतीय सेना में थे तथा उनकी माता स्वास्थ्य विभाग में पर्यवेक्षक थी, अरुणिमा की एक बड़ी बहन तथा एक छोटा भाई भी है, अरुणिमा जब तीन साल की थी तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी, पिता की मृत्यु के बाद अरुणिमा की माँ ने ही उनके परिवार की देखभाल की, तथा 2019 में अरुणिमा की शादी हुई उनके पति का नाम गौरव सिंह है।
अरुणिमा सिन्हा की शिक्षा और करियर :-
अरुणिमा सिन्हा की प्रारंभिक शिक्षा आंबेडकर नगर में ही हुई है अरुणिमा को पर्वतारोहण करना तथा वॉलीबॉल खेलना पसंद था इसलिए प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद अरुणिमा ने उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग कॉलेज से पर्वतारोहण का कोर्स किया, तथा ट्रैन हादसे के बाद खेल मंत्रालय द्वारा अरुणिमा को CISF में हेड कांस्टेबल की नौकरी दी गई।
अरुणिमा सिन्हा के साथ ट्रेन हादसा :-
अरुणिमा ने CISF परीक्षा के लिए आवेदन किया था, इसलिए इस परीक्षा के पेपर के लिए 2011 में अरुणिमा को दिल्ली जाना था, 12 अप्रैल 2011 को अरुणिमा पद्मावत एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी तभी बरेली के पास कुछ लुटेरे आये और अरुणिमा से उनके बैग और गले में सोने की चेन छीनने की कोशिश करने लगे जब अरुणिमा ने उन लुटेरों का विरोध किया तो अरुणिमा को उन लुटेरों ने ट्रेन से बाहर फेंक दिया।
इससे अरुणिमा दूसरी ट्रेन के ट्रैक पर गिर गई तथा अरुणिमा के गिरने के बाद उस ट्रैक पर ट्रेन आ गई, जिससे अरुणिमा का एक पैर ट्रेन के नीचे आ गया जिससे उनका पैर कट चुका था अरुणिमा काफी चिल्लाती रही पर ना तो उनकी किसी ने सुनी और ना ही तब उन्हें कोई बचाने आया, अरुणिमा के ट्रैक पर गिरने के बाद उनके पैर के ऊपर से 49 ट्रेन गुजर चुकी थी चिल्ला चिल्ला के अरुणिमा बेहोश हो गयी, पैर इतना खराब हो गया था कि चूहे तक पैर की स्किन खाने लग गए थे, अगले दिन सुबह जब गांव वालों ने ट्रैक पर अरुणिमा को घायल रूप में देखा तो लोगों ने अरुणिमा को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया।
अरुणिमा का वह एक पैर पूरी तरह खराब हो गया था, जिससे डॉक्टर को उनका वह पैर काटना पड़ा इसके बाद अरुणिमा को दिल्ली AIIMS हॉस्पिटल में ट्रांसफर किया गया, जहां उनके कटे हुए पैर में कृत्रिम पैर लगाया गया, अरुणिमा दिल्ली AIIMS में लगभग 4 महीने भर्ती रही थी AIIMS से छुट्टी होने के बाद दिल्ली की एक संस्था ने अरुणिमा को एक कृत्रिम पैर भी दिया था, यह घटना वाकई में एक दिल दहला देने वाली घटना है, पर अरुणिमा ने हार नहीं मानी, सोचा भगवान ने उनकी ज़िन्दगी बचा दी और अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के बारे में सोचा।
अरुणिमा एक राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल चैंपियन थी, पर इस घटना के बाद अरुणिमा इस खेल में अपना भविष्य नहीं देख सकती थी, डॉक्टर्स ने उनको आराम करने की सलाह दी थी और स्पोर्ट्स से दूर रहने की सलाह भी दी थी, पर अरुणिमा ऐसे बैठने वाली लड़कियों में नहीं थी, उसने सोचा की वह ऐसे लाचार नहीं बनेगी और ना ही किसी के लिए बोझ बनेगी और अपना एक अलग रास्ता चुनकर एक मिसाल बनेगी।
अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha) का माउंट एवरेस्ट तक सफर :-
AIIMS से छुट्टी होने के बाद अपना पर्वतारोही का सपना पूरा करने के लिए अरुणिमा बछेन्द्री पाल से मिलने जमशेदपुर गई, तथा बछेंद्री पाल को अपना गुरु बनाया, बछेंद्री पाल भी अरुणिमा की इस हालत के बाद भी पर्वतारोही जैसा सपना पूरा करने की उसकी ललक देखकर मान गयी थी, बछेंद्री पाल ने अरुणिमा का सपना पूरा करने में उसकी पूरी मदद की, तथा अरुणिमा ने भी अपना सपना पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बछेंद्री पाल के नेतृत्व में अरुणिमा ने अपना प्रशिक्षण पूरा किया तथा 31 मार्च 2013 को अपना माउंट एवरेस्ट फतह करने का अपना मिशन शुरू कर दिया पहले तो शेरपा ने उन्हें ऊपर जाने से मना कर दिया था पर बछेंद्री पाल और अरुणिमा ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह फतह कर लेगी इसके बाद शेरपा भी मान गए और सबने एवरेस्ट की चढ़ाई करना शुरू कर दिया उनके दल में कुल 6 लोग थे।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के दौरान अरुणिमा का आर्टिफीसियल पैर फिसल रहा था शेरपा मना कर रहे थे कि आगे मत जाओ पर अरुणिमा हार मैंने वालो में से नहीं थी अरुणिमा बर्फ के टुकड़े हटाती, फिर आगे बढ़ती पर अंत में 52 दिनों के ऐसे संघर्ष के साथ अरुणिमा ने 21 मई 2013 को माउंट एवेरेस्ट फतह किया तथा वह माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली विश्व की प्रथम विकलांग महिला पर्वतारोही बनी।
माउंट एवरेस्ट फतह करने के बाद अरुणिमा का लक्ष्य सभी सात महाद्वीप की सभी सात सबसे ऊँची चोटी फतह करना था तथा उन चोटियों पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराना था इसलिए अरुणिमा ने अफ्रीका में किलिमंजारो, यूरोप में एल्ब्रस, ऑस्ट्रेलिया में कोसियुज़्को, दक्षिण अमेरिका में एकॉनकागुआ और उत्तरी अमेरिका में डेनाली रेंज को फतह किया तथा अंत में अरुणिमा 4 जनवरी 2019 को अंटार्कटिका की सातवीं चोटी पर गईं और माउंट विंसन पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला बन गईं।
अरुणिमा सिन्हा को मिले सम्मान और पुरस्कार :-
- अरुणिमा सिन्हा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में देश का चौथा सबसे बड़ा सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया।
- अरुणिमा को वर्ष 2016 में तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर पुरस्कार से भी नवाजा गया।
- अरुणिमा के जज्बे के लिए भारत सरकार की तरफ से 20 लाख, उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 25 लाख तथा समाजवादी पार्टी की तरफ से 5 लाख का इनाम दिया गया।
अरुणिमा सिन्हा के बारे में जानकारी (FAQs) :-
प्रश्न: अरुणिमा सिन्हा कौन हैं?
उत्तर: अरुणिमा सिन्हा एक भारतीय विकलांग महिला है जिसने विकलांग होते हुए विश्व में प्रथम माउंट एवरेस्ट फतह किया है।
प्रश्न: अरुणिमा सिन्हा का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: अरुणिमा सिन्हा का जन्म उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर में 20 जुलाई 1989 को हुआ था।
प्रश्न: अरुणिमा सिन्हा कौन-कौन से पर्वतों को फतह कर चुकी हैं?
उत्तर: अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट, किलिमंजारो, एल्ब्रस, कोसियुज़्को, एकॉनकागुआ, डेनाली रेंज और माउंट विंसन जैसे कई पर्वतों को फतह किया है।
प्रश्न: अरुणिमा सिन्हा के साथ क्या हादसा हुआ था?
उत्तर: अरुणिमा 12 अप्रैल 2011 को अरुणिमा पद्मावत एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी, तभी बरेली के पास ट्रेन में कुछ लुटेरे आये और अरुणिमा से उनके बैग और गले में सोने की चेन छीनने की कोशिश करने लगे जब अरुणिमा ने उन लुटेरों का विरोध किया तो अरुणिमा को उन लुटेरों ने ट्रेन से बाहर फेंक दिया, जिससे वह दूसरे ट्रैक पर गिर गयी और उनके एक पैर पर से ट्रेन निकल गयी जिसकी वजह से उनका एक पैर कट गया।
प्रश्न: अरुणिमा सिन्हा को कौन कौन से पुरस्कार मिल चुके है?
उत्तर: अरुणिमा सिन्हा को 2015 में पद्मश्री और 2016 में तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और समाजवादी पार्टी से नगद पुरस्कार भी मिला है।
निष्कर्ष :-
अरुणिमा की ज़िन्दगी कोई आम ज़िन्दगी नहीं थी,छोटी सी उम्र में पिता को खोना, अपनी जवानी में अपने एक पैर को खोना तथा फिर भी हार ना मानते हुए अपना एक पैर खोते हुए दुनिया का सबसे ऊँचा शिखर माउंट एवेरेस्ट फतह करना सातों महाद्वीपों की सभी ऊँची छोटी फतह करना आम बात नहीं है, अरुणिमा की कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी मुश्किल में हार नहीं माननी चाहिए तथा हमेशा खुद पर विश्वास रखना चाहिए।
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